मां बनना किसी महिला के लिए बहुत ही सुखद अहसास माना जाता है। पर कई बार शारीरिक असमर्थताओं को चलते कुछ महिलाए इस सुख से वचिंत भी रह जाती है। इस मातृत्व सुख को पाने के लिए अक्सर दंपति सरोगेसी का सहारा भी ले लेते है।
सोरगेसी की मदद अधिकतर बच्चा कंसीव ना कर पाने, बार बार गर्भपात होने या फिर आईवीएफ तकनीक के फेल होने पर भी ली जाती है।
- सरोगेसी, लैटिन भाषा में सबरोगेट शब्द से निकल कर आया है, जिसका मतलब किसी और को अपने काम के लिए नियुक्त करना होता है। इसमें पुरुष के शुक्राणु और महिला के अंडाणु को लेकर इनक्यूबेटर में गर्भ जैसा अच्छा माहौल दिया जाता है। भ्रूण तैयार होने पर उसे किसी तीसरी महिला में तुरंत इंजेक्ट कर दिया जाता है। गर्भधारण करने वाली यह महिला सरोगेट मदर भी होती है। ट्रेडिशनल और जेस्टेशनल दो तरह की सरोगेसी पायी जाती है।
- ट्रेडिशनल यानि पारंपरिक सरोगेसी में पिता के शुक्राणुओं को एक स्वस्थ महिला के अंडाणु के साथ प्राकृतिक रूप से उसमे निषेचित किया जाता है। शुक्राणुओं को सरोगेट मदर के नेचुरल ओव्युलेशन के समय डाला जाता है। इसमें जेनेटिक संबंध सिर्फ और सिर्फ पिता से होता है।
- जेस्टेशनल सरोगेसी में माता-पिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का मेल परखनली विधि से करवा कर भ्रूण को सरोगेट मदर की बच्चेदानी में आसानी से प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। इसमें बच्चे का जेनेटिक संबंध मां और पिता दोनों से होता है। इस पद्धति में सरोगेट मदर को दवाईयां खिलाकर अंडाणु विहीन चक्र में रखना पड़ता है जिससे बच्चा होने तक उसके अपने अंडाणु कभी भी न बन सके।
- सरोगेसी एक बहुत मंहगी प्रकिया होती है जिसके लिए तक़रीबन 8-12 लाख रूपये तक लग सकते है। सरोगेसी की प्रकिया को चुनने से पहले इसके बारे में पूरी जानकारी लेना बहुत जरूरी होता है।