कुल्हड़ में चाय पीने का मजा ही कुछ और था। गिलास आई तो भी काम चल गया, गिलास जूठा हो सकता है मगर सेहत के लिए खतरनाक नहीं। फिर आया प्लास्टिक का गिलास, सस्ता और सहूलियत भरा होने के चलते लोगों ने शुरू में इसे खूब पसंद किया मगर थोड़ा अर्सा बीता कि डॉक्टरों और विशेषज्ञों ने बताया कि इसके इस्तेमाल से कैंसर और नपुंसकता आ सकती है।
इसके बाद विकल्प के तौर पर आया कागज का कप। लोगों को लगा कि चलो कागज तो सुरक्षित ही होता है मगर ये सरासर गलत है। कागज के कप वाली चाय स्वाद में कैसी भी हो मगर सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है।
कागज के इन कपों में जब गर्म चीज पड़ती है तो गोंद वगैरा से मिलकर कैमिकल बन जाता है। इससे आंतों, गले और गुर्दे में बीमारियां पैदा हो सकती हैं।
इसकी सीधे तौर पर दो वजह हैं नंबर एक है कप बनाने में इस्तेमाल होने वाला कागज और दूसरा है कप बनाने में लगने वाला गोंद।
पहले कागज की बात करते हैं। जिस कागज से कप बनाया जाता है वह फ्रेश नहीं होता वह रद्दी को रीसाइकिल करके बनाया जाता है। बनाने वाले पैसे बचाने के लिए कैसी भी रद्दी इस्तेमाल कर लेते हैं।
इन पर पहले से कितनी ही तरह के कैमिकल वगैरा लगे होते हैं। इसी कागज पर जब गर्म चाय पड़ती है तो कई तरह के नुकसान करने वाले कैमिकल इसमें घुल जाते हैं या बन जाते हैं।
दूसरे नंबर पर आता है गोंद। कप को चिपकाने में इस्तेमाल होने वाली चीज बबूल के पेड़ से निकली हुई ताजा गोंद तो होती नहीं, जिसे खाने से आप बलवान बनेंगे। ये तो कैमिकल और अन्य सस्ती चीजों का जुगाड़ करके बनाया हुआ ऐसा पेस्ट होता है कि बस किसी तरह चिपकाने के काम आ जाए।
थोड़ा अर्सा पहले यूपी के फूड सेफ्टी डिपार्टमेंट ने बाजार में बिक रहे कई तरह के प्यालों की जांच करवाई थी, जिसमें यह बात सामने आई।