प्रयागराज (एजेंसी/वार्ता):तीर्थराज प्रयागराज में नवरात्र के मौके पर अलोपी देवी के अनूठे मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। मंदिर की खासियत यह है कि यहां पर माता की मूर्ति ही नहीं है यानी बिना मूर्ति की ही माता की पूजा होती है। शक्ति का ऐसा स्वरूप प्रयागराज में आज भी विद्यमान है।
आलोपीबाग स्थित अलोपशंकरी देवी का प्राचीन सिध्दपीठ मंदिर नवरात्र पर आस्था का सबसे बड़ा केंद्र होता है जहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु माता के भव्य पालने वाले स्वरूप का दर्शन करने आते हैं।
मान्यता है कि यहां सुदर्शन चक्र से कटा था सती के हाथ का पंजा, यहां गिरते ही हुआ था गायब,सती के दाहिने हाथ का पंजा गिरकर गायब हो गया था ,सती के पंजे के अलोप (गायब) होने की वजह से ही इस सिद्ध पीठ का नाम अलोपशंकरी पड़ा। मन्दिर में प्रतीक के तौर पर एक पालना रखा हुआ है।
मां सती का एक ऐसा शक्तिपीठ है जहां न मां की कोई मूर्ति है और न ही किसी अंग का मूर्त रूप है।अलोपशंकरी देवी के नाम से विख्यात इस मंदिर में लाल चुनरी में लिपटे एक पालने का पूजन और दर्शन होता है।
अलोपशंकरी मंदिर के गर्भगृह में बीचोबीच एक चबूतरा बना है जिसमें एक कुंड है। कुंड के ऊपर चौकोर आकृति का लकड़ी का पालना है जिसे झूला भी कहते हैं इस पर चांदी की परत लगी है जो मांगी की शोभा बढाती है।कुंड के ऊपर चौकोर आकार में लकड़ी का पालना या झूला रस्सी से लटकता रहता है.
जो एक लाल कपड़े (चुनरी) से ढंका रहता है।हजारों की संख्या में भक्त यहां मां का दर्शन करने आते हैं।नवरात्र के दौरान माँ के इस स्वरूप के दर्शन करने के लिए कई कई घंटे लाइनो मे लगना पडता है लम्बी लम्बी लाइने लगती है।
-(एजेंसी/वार्ता)
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